Tuesday, December 11, 2012

उज्जाई श्वास की क्रिया


कई बार योगी साधारण श्वास की जगह उज्जाई श्वास लेतें है . इससे एक प्रकार की ऊर्जा और गर्मी पैदा होती है जो शरीर से विषाक्त तत्व बाहर निकालने में मदद करती है . कहते है हिमालय की बर्फीली ठण्ड में इसी श्वास के कारण योगी निर्वस्त्र भी तप करते है .इसे करते हुए समुद्र के लहरों की तरह आवाज़ आती है ; इसलिए इसे "ओशन ब्रीद" भी कहते है . योगासन करते हुए हर आसन में ठहरते हुए 4-5 उज्जाई श्
वास लेने से लाभ में वृद्धि होती है .
इस क्रिया को करने के लिए पद्मासन या सुखासन या वज्रासन में बैठ जाएं। पीठ सीधी रखे .आंखें बंद करते हुए शरीर को तनावमुक्त कर दें और अपना ध्यान अपने गले पर ले जाएं। अब कल्पना करें कि आप श्वास नाक से ना लेकर गले से ले रहे हैं। अब अपने गलकंठ को अंदर खींचते हुए आवाज के साथ लंबा श्वास भरें और फिर गले को भींचते हुए ही श्वास छोड़ें। यह इस क्रिया का एक चक्र हुआ। कम से कम इस क्रिया के 10 चक्रों का अभ्यास करें।
लाभ: यह क्रिया गले संबंधी समस्त रोग, गलकंठ, कंठमाला, गाइटर, टॉन्सिल और खर्राटे में बहुत ही लाभप्रद है। यह हमारे स्नायु तंत्र और मस्तिष्क को सबल बनाती है। अच्छी नींद के लिए यह क्रिया राम-बाण का काम करती है। कार्य क्षमता का भी विकास होता है . श्वास लम्बी होती है जो आयु में वृद्धि करता है . शरीर पूर्णतः एकाकार हो कर लय और सुर में आता है और निरोग होता है .सभी अवयव एक दुसरे से तालमेल बैठाते है ; क्योंकि शरीर का कोई भी अंग स्वतन्त्र नहीं पर एक दुसरे पर निर्भर है .
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